हिंदी कहानियां - भाग 47
दशाह अकबर के दरबार में बीरबल से वरिष्ठ दरबारी भी थे, परंतु अकबर बीरबल को ही अधिक महत्व देते थे। जिसके कारण अन्य सभी दरबारी बीरबल से ईष्या करते थे। एक दिन वे सभी मिलकर इस विषय में बातचीत करने के लिए बादशाह के महल में पहुँचे। उनमें से एक बोला ‘महाराज, हम भी आपको उतना ही प्यार व सम्मान देते हैं, जितना बीरबल देते हैं। हम बीरबल से वरिष्ठ दरबारी हैं, परंतु किसी भी समस्या के समाधान के लिए आप हमें मौका नहीं देते। हमें भी अपना विश्वास जीतने का एक मौका दीजिए।” बादशाह अकबर उनकी शिकायत सुनकर मुस्कुराए और कहा “ठीक है, कल तुम्हारी शिकायत दूर कर दी जाएगी। मैं तुम्हारे सामने एक चुनौती रखेंगा। यदि तुम जीत गए, तो तुम्हें भी वही सम्मान मिलेगा जो बीरबल को मिला हुआ है।” बादशाह की बात सुनकर सभी दरबारी सहमत हो गए। अगले दिन फिर सभी दरबारी राजमहल में पहुँच गए। बादशाह अकबर ने एक सैनिक को दो मीटर की एक चादर लाने को कहा। इसके बाद वह पलग पर पीठ के बल सीधे लेट गए और बोले “इस चादर से मुझे पूरी तरह ढक दो, मेरे शरीर का कोई भी अंग बिना ढका नहीं रहना चाहिए।”
बादशाह अकबर एक लम्बे-चौड़े व्यक्ति थे। दरबारियों ने उन्हें चादर से ढकने का बहुत प्रयास किया, परंतु सफलता नहीं मिली। यदि उन्हें सिर से ढकते, तो उनके पैर खुले रह जाते थे और यदि पैर को या ढकते तो सिर रह जाता था। जब यह सब कुछ हो रहा था, तभी वहाँ बीरबल आ पहुँचा। पूछने पर बादशाह अकबर ने कहा “बीरबल मैं यहाँ पलंग पर हैं। मैं चाहता हूँ कि मेरे शरीर को पूरी तरह इस चादर से ढक दिया जाए, जिससे मेरे शरीर का कोई भी अंग चादर के बाहर न रहे।” बीरबल पलंग के पास पहुँचा और बोला ‘महाराज, मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि एक क्षण के लिए आप अपने घुटनों को पकड़ कर सिकुड़ जाइए।” जैसे ही बादशाह अकबर ने ऐसा किया, बीरबल ने तुरंत बादशाह के ऊपर चादर डाल दी और बादशाह का शरीर पूरी तरह उससे ढक गया। तब बीरबल बोला “दोस्तों, यह एक पुरानी कहावत है कि ‘तेते पाँव पसारिए जेती लॉबी सौर।’ यानि कि अपने पैरों को उतना ही फैलाना चाहिए, जितनी लंबी चादर हो।”
इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति को अपनी सीमा में रहना चाहिए। यदि चादर छोटी है, तो उसके अनुरूप अपने आपको सिकोड़ लें। अर्थात् यदि आय कम है, तो शानो-शौकत पर व्यर्थ खर्च नहीं करना चाहिए।” बादशाह अकबर पलंग से उठ गए। सभी दरबारी समझ चुके थे कि बादशाह अकबर उन्हें क्या संदेश देना चाह रहे थे। उन सबको आभास ही चुका था कि वे बीरबल के पद एवं सम्मान के योग्य नहीं हैं, अत: उन्हें यह पद नहीं मिल सकता। तब बादशाह बोले “अब तुम सब समझ चुके होगे कि यह बीरबल की बुद्धिमत्ता व चतुराई है, जिसके कारण उसे यह स्थान मिला है।”